Wednesday, 1 August 2012

तुमको प्रथम प्रणाम गजानन


(1)

तुमको प्रथम प्रणाम गजानन

तुमको प्रथम प्रणाम गजानन। तुम हो सुख के धाम गजानन
नाम तुम्हारा ले लेने से। बनते सारे काम गजानन
तुमको प्रथम प्रणाम गजानन


बल विद्या के तुम हो सागर।विभु वैभव के तुम हो आगर
आदि-अंत संसृति का तुमसे।प्रथम पूज्य हो देव धरा पर
पुण्य तुम्हारा नाम गजानन
तुमको प्रथम प्रणाम गजानन


तुम हो सुख-संपति के दाता। अखिल विश्व के तुम निर्माता
            तुम गणपत्ति तुम विघ्न-विनाशक। अज्ञ विज्ञ सब गुण के ज्ञाता।
तुम अतुलित अभिराम गजानन
तुमको प्रथम प्रणाम गजानन

भाव-भक्ति सब तुमको अर्पण। दिन अनुदिन पल-पल हर अनुक्षण
रोम-रोम में वास तुम्हारा। तुम ही तुम बसते हो कण-कण
जपूँ सुबह अरु शाम गजानन
तुमको प्रथम प्रणाम गजानन

- डॉ. रामवृक्ष सिंह
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(2)
हे माँ सरस्वती

हे माँ सरस्वती, हे माँ शारदे! हे माँ वीणा-वादिनी
तेरे चरणों में बलि-बलि जाऊँ हे माँ, ब्रह्मा नंदिनी

तूने जग को ज्ञान दिया माँ,
बुधि विद्या विज्ञान दिया माँ
सकल कला का बोध कराया
सभी गुणों का दान दिया माँ

प्रथम पूज्य तू, प्रथम वंद्य तू, हे माँ हंस वाहिनी
हे माँ सरस्वती, हे माँ शारदे, हे माँ वीणा-वादिनी


तेरा जो वरदान मिले माँ
छंद मिलें, सुर-तान मिले माँ
तेरी कृपा जिस पर हो जाए
सब सुविधा- सम्मान मिले माँ

हरती है अज्ञान-तिमिर माँ, तू विद्या-वर-दायिनी
हे माँ सरस्वती, हे माँ शारदे! हे माँ वीणा-वादिनी


तेरा ही आह्वान करूँ माँ
निस-दिन तेरा ध्यान करूँ माँ
मनसा-वाचा और कर्मणा
बस तेरा गुणगान करूँ माँ

भरना माँ आलोक हृदय में, सकल कला संपादिनी
हे माँ सरस्वती, हे माँ शारदे, हे माँ वीणा-वादिनी
- डॉ. रामवृक्ष सिंह
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(3)
गुरुवर के गुणगान

गुरुवर के गुणगान के काबिल शब्द कहाँ से लाऊँ राम
छोटे मुख से बात बड़ी ये, कैसे मैं बतलाऊँ राम

मातु-पिता ने रच दी काया
पंच तत्व का पिण्ड बनाया
कष्ट घनेरे सह जननी ने
इस दुनिया का मुख दिखलाया

मातु-पिता के श्री-चरणों में अपना शीश नवाऊँ राम
गुरुवर के गुणगान के काबिल शब्द कहाँ से लाऊँ राम


बोध न होता, ज्ञान न होता
स्वत्व का अपने भान न होता
क्या करना है कहाँ है जाना
पंथ का कुछ अनुमान न होता
गुरु ने दिखाई राह जो कहकर क्या उसको समझाऊँ राम
गुरुवर के गुणगान के काबिल शब्द कहाँ से लाऊँ राम

हम पामर थे, हम अज्ञानी
थे अबोध मूरख अभिमानी
गुरु-प्रसाद से खुले चक्षु जब
हमने सच्चाई पहचानी
परमब्रह्म-सम गुरुजन उनके चरणों बलि-बलि जाऊँ राम
गुरुवर के गुणगान के काबिल शब्द कहाँ से लाऊँ राम

- डॉ. रामवृक्ष सिंह

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