Friday, 3 August 2012

चाँदनी रात है


(1)

जहाँ के ग़म मुझे चाहे युंही सदा देना।
मैं सर उठा के जिऊँ इतना हौसला देना।

सता-सता के मुझे लुत्फ उठानेवालो
मेरे ज़मीर का मुझको वास्ता देना।

मुझे क़बूल हैं सारे गुनाह दुनिया के
तुम्हारे जी में जो आए मुझे सज़ा देना।

जिन्दगी हर कदम पे मुझको दगा देती है
मौत देना मेरे मौला, तो बावफा देना।

ख़ुदा के खौफ से ग़ाफिल हुआ मैं दीवाना
नेक दोस्त, उसे जाके इत्तिला देना।

कोई भी अक़्स ज़ेहन में रहा नहीं बाकी
वो जो आएँ, तो हवाओ मुझे बता देना।
--0--

(2)

ज़िन्दग़ी, तूने बड़ा रुसवा किया
आरजूओं को यूं बेपरदा किया

मैं उसी की याद में मसरूफ था
जिसने मुझको भीड़ में तनहा किया

ज़ेब देता है सितम ढाना उसे
क़ुफ़्र है हमने अगर शिकवा किया

याद चाहे वो करते उम्र भर
रंज इतना है कि क्यों बिसरा दिया

वो कहीं मिल जाएँगे फिर से हमें
रोजो-शब हर सू यही सोचा किया

मिल गया मुझको अकीदत का सिला
देवता ने दर से यूँ चलता किया

ज़िन्दगी की डोर है उस हाथ में
जिसने है ताजिन्दगी बलवा किया

मौत के आग़ोश में दी ज़िन्दग़ी
या इलाही, ये बड़ा अच्छा किया।
--0--

(3)

चाँदनी रात है, पुरसर्द हवा हम-तुम।
दूर तक सिर्फ समंदर की सदा हम-तुम।

मरमरी ज़िस्म लरजते गुदाज़, बाँहों में
हर एक शै है मुहब्बत में निहा हम-तुम।

उम्र भर कैसे समाए रखेंगे पहलू में
दिल में चाहत के तलातुम ये जवाँ हम-तुम।

चाँद छू लेने को आमादा मचलती मौजें
भीगती रात सुलगती-सी शमां हम-तुम।

हमको मालूम है उल्फत की हकीकत हमदम
एक दुशवार-सी हस्ती--खुदा हम-तुम।
---0---
                                                      डॉ. रामवृक्ष सिंह

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