(1)
रात को सर्द मसहरी में जब
आदतन मुझको खोजती होगी।
भरके तकिये गुदाज़ बाँहों में
अश्क धीरे से पोंछती होगी।
अपने साये से चौंकनेवाली
कैसे शम्माएं बुझाती होगी।
मेरी बाँहों के सिरहाने के बिना
नींद कैसे उसे आती होगी।
दिल में हर रात मुझसे मिलने के
कितने जज्बात सुलगते होंगे।
अश्क धीरे-से उसकी आँखों से
ज़र्द गालों पे ढुलकते होंगे।
मेरी यादों के सहारे उसने
कितने दिन-रात गुजारे होंगे।
कितनी बेताब तमन्नाओं के
क़ाफिले पार उतारे होंगे।
मेरे आने का ग़ुमाँ होने पर
बारहा रोज़ वो रोयी होगी।
नींद जब मुझको नहीं आती है
कैसे मानूँ कि वो सोयी होगी।
(2)
अपने ही सिम्त अपनी साँसों से
उसने कोई ग़ज़ल कही होगी।।
दिल बड़ी ज़ोर से धड़कता है
वो कहीं छिपके रो रही होगी।।
फिर हवा लाई है पयाम कोई
आके वो बाम पे बैठी होगी।।
दूर जितनी भी निगह जा पाए
वो मेरा रास्ता तकती होगी।।
शाम ढलने पे अपने-अपने घर
ज़िन्दग़ी रोज लौटती होगी।।
कब तलक उनका लौटना होगा
खुद से हर बार पूछती होगी।।
बेतरह मेरी ही तस्वीर कोई
उसकी आँखों में बस गयी होगी।।
नींद आ-आ के शबिस्तानों से
बारहा रोज़ पलटती होगी।।
उसकी झुकती सियाह पलकों में
कितनी
वीरान उदासी होगी।।
वो कई रोज़ से भूखी होगी
वो कई माह से प्यासी होगी।।
जिसने ये दर्द दिया है हमको
उसने उल्फ़त
नहीं जानी होगी।।
प्यार करके न निभाया होगा
रूह की शै नहीं मानी होगी।।
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