शिशु-गीत
मच्छर
राम अंकल (डॉ. रामवृक्ष सिंह)
भन-भन करता आता मच्छर।
काट-काटकर गाता मच्छर।
बींध-बींध छिप जाता मच्छर।
आती नींद भगाता मच्छर।
रातों-रात जगाता मच्छर।
रहता है तालाब के ऊपर।
पीता नहीं है पानी क्योंकर।
घुस जाता जबरन घर भीतर।
खून ही पीता-खाता मच्छर।
फिर भी नहीं मुटाता मच्छर।
रोग कई है लाता मच्छर।
मलेरिया फैलाता मच्छर।
फील पाँव का दाता मच्छर।
इसीलिए इतना खूं पीकर।
बिलकुल नहीं अघाता मच्छर।
माँ कहती है इसे भगाओ।
पापा कहते टिकिया लाओ।
मच्छर की बत्ती सुलगाओ।
जाली लगाके रोको बाहर।
बिलकुल नहीं सुहाता मच्छर।
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