आई है बरसात शहर में
डॉ. रामवृक्ष सिंह
आई है बरसात शहर में, रिमिर-झिमिर पड़ रहीं
फुहारें।
चिल्ला-चोट मचाते हैं सब, स्कूटर, ऑटो, टैक्सी,
कारें।।
सांसत
में फँस गए प्राण हैं, भीड़ छँटे तो दफ्तर पहुँचें।
शाम
वही फिर धक्का-मुक्की, जान बचे वापस घर पहुँचें।।
सड़क
वही, वैसा ही ट्रैफिक, सिर्फ बदलती हैं सरकारें।।
घुटने-घुटने लगता पानी, सड़क नहीं जैसे हो नाला।
इन्हें बनाने का ठेका जो पा जाता मंत्री का
साला।।
सत्य-निष्ठ हैं कौन मनुज जो, इन शहरों के भाग्य
संवारें।।
कहाँ खुला सीवर का ढक्कन पानी नीचे, कैसे जानें?
कहाँ
छिपा बैठा है खतरा, मौत कहाँ, कैसे पहचानें?
भ्रष्टों के इस सप्त-सिन्धु में कैसे जीवन-नाव
उतारें?
बिजली का कुछ नहीं ठिकाना, जाकर अब जाने कब आए।
भला नागरिक बिल भर-भरकर बस अपना कर्तव्य निभाए।।
हवा बिना घबराता है जी, उमस में कैसे रात
गुजारें।।
गाँव नहीं जा सकते रहने, वहाँ की आफ़त और बड़ी
है।
सुविधाएं कुछ नहीं हैं लेकिन राजनीति बेहद तगड़ी
है।।
नेताओं पर अब निर्भर है, हमें जिलाएँ या वे
मारें।।
वादों की खेती फलदायी, पक्का सौदा, नहीं जुआ है।
अनावृष्टि या अल्पवृष्टि ने इसको अब तक नहीं छुआ
है।
आओ वादों के सर्जक नेतागण की आरती उतारें।।
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