Wednesday, 19 August 2015

आसमान के भिश्ती बादल (गीत)



आसमान के भिश्ती बादल (गीत)
               डॉ. रामवृक्ष सिंह

आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।
बिजली के संग झूम-झूमकर खूब नाचते-गाते हैं।

मई-जून में धरती सारी जब जलने लग जाती है।
व्याकुल होकर जब सब दुनिया हर पल इन्हें बुलाती है।
बहुत दूर सागर से जल ले, दौड़े-दौड़े आते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

खेती का अब समय हो गया, चला चुके खेतों में हल।
जरा सिंचाई हो जाए तो मिले हमें मेहनत का फल।
इसी सोच में पड़े कृषक जब, प्रभु से रोज मनाते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

दूर पहाड़ों पर घाटी में मैदानों में गाँव-शहर।
उमड़-घुमड़ कर बड़े मजे से बरसाते पानी घर-घर।
इसीलिए धरती माता से इनके गहरे नाते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

मस्त पवन घोड़े हैं इनके आसमान है इनका घर।
गिर जाने का आसमान से इनको नहीं जरा-सा डर।
अलबत्ता ये गरज-गरज बच्चों को बहुत डराते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

पाकिस्तान के नाम (कविता)



पाकिस्तान के नाम (कविता)
                     डॉ. रामवृक्ष सिंह
हिंस्र पशु है वो मगर हम शान्ति के शाश्वत पुजारी।
कोई बतलाए कभी क्या शान्ति है हिंसा से हारी।।

प्रेम से यदि वह न माने तो हमें आती लड़ाई।
फिर कोई हमसे न कहना जान गर उसने गँवाई।।

वह अगर छोटा है हमसे कर रहा उद्दंडता क्यों।
दे न पाएँ माफियाँ हम, कर रहा ऐसी खता क्यों।

युद्ध यदि लाजिम हुआ तो हम लड़ेंगे प्राण-पण से।
आन पर आ जाए यदि तो भय नहीं हमको मरण से।

किन्तु जिनको युद्ध भाए, मूर्ख हैं, नादान हैं वे।
शान्ति के हम हैं पुजारी युद्ध का आह्वान हैं वे।

दीन को, अपने खुदा को क्यों हैं वे बदनाम करते।
क्यों नहीं कौमी तरक्की के लिए कुछ काम करते।

पेशतर होता कि पढ़-लिखकर भले इन्सान बनते।
डॉकटर बनते, मुदर्रिस या कि साइंसदान बनते।

होश में आते ही गोले बम और बंदूकें उठा ली।
आदमी है वे कि आदम जात को हैं एक गाली।।

वह सपूत भारत माता का....



वह सपूत भारत माता का (गीत)
                   डॉ. रामवृक्ष सिंह

वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।
अवनि और अंबर में जिसने भरत-भूमि की शान बढ़ाई।।

जिसने सिखलाया बच्चों को सपनों के पंखों पर उड़ना।
प्रासादों औ प्राचीरों को तज अपनी मिट्टी से जुड़ना।
सबसे ऊँचा पद पाकर भी विनयशीलता नहीं भुलाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।।

बना आणविक शक्ति देश तब जब उसने अभियान चलाया।
अग्नि और पृथ्वी के ज़रिए भारत का परचम लहराया।
और अगर मौका पाया तो वीणा जिसने मधुर बजाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।।

जिसकी आँखों में बसते थे नव-भारत के स्वप्न सुहाने।
चला गया निष्ठुर तजकर सब, सत्य किन्तु मन कैसे माने।
उस अजातअरि से भी यम ने यह कैसी दुश्मनी निभाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।

जिसकी चमक न होगी फीकी, वह भारत का रत्न अनूठा।
उस गौरवमय के समक्ष सर्वस्व धरा का लगता झूठा।
हा! हतभागी भरत-वर्ष ने वह अमूल्य निधि आज गँवाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।

बादल (कविता)



बादल (कविता)
      डॉ. रामवृक्ष सिंह

आसमां में मचल रहे बादल।
अब गिरे अब संभल रहे बादल।
छुप गया माहताब है जबसे,
तब से करवट बदल रहे बादल।।

दूर पूरब से हवा आती है।
सोई हसरत को जगा जाती है।
सब्जाजारों में सिहरनें उठतीं
जैसे पंखा-सा झल रहे बादल।

शोख परबत के सरनिगूं सीने।
उनपे मलबूस रेशमी झीने।
छू गया जब से पैरहन उनका
तब से दिन-रात जल रहे बादल।

जैसे आशिक हो कोई आवारा।
या कि बेघर हो कोई बंजारा।
घर बसाने की चाहतें लेकर
रोजो-शब सिर्फ चल रहे बादल।

बिजलियाँ गिर गईं ठिकानों पर।
हसरतें लेके अपने शानों पर।
और कुछ भी न कर सके हैं गर।
रोजो-शब बस पिघल रहे बादल।