आसमान के भिश्ती बादल (गीत)
डॉ. रामवृक्ष सिंह
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।
बिजली के संग झूम-झूमकर खूब नाचते-गाते हैं।
मई-जून में धरती सारी जब जलने लग जाती है।
व्याकुल होकर जब सब दुनिया हर पल इन्हें बुलाती है।
बहुत दूर सागर से जल ले, दौड़े-दौड़े आते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।
खेती का अब समय हो गया, चला चुके खेतों में हल।
जरा सिंचाई हो जाए तो मिले हमें मेहनत का फल।
इसी सोच में पड़े कृषक जब, प्रभु से रोज मनाते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।
दूर पहाड़ों पर घाटी में मैदानों में गाँव-शहर।
उमड़-घुमड़ कर बड़े मजे से बरसाते पानी घर-घर।
इसीलिए धरती माता से इनके गहरे नाते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।
मस्त पवन घोड़े हैं इनके आसमान है इनका घर।
गिर जाने का आसमान से इनको नहीं जरा-सा डर।
अलबत्ता ये गरज-गरज बच्चों को बहुत डराते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।