Wednesday, 9 September 2015

हमाारे हिप्पोक्रैटिक समाज में सफाई



हमारे हिप्पोक्रैट समाज में सफाई
                                                                  डॉ. रामवृक्ष सिंह
हमारे देश में अच्छा काम करने वालों को लोग अव्वल दर्ज़े का बेवकूफ समझते हैं। यदि न समझते होते तो मोदी महोदय के सफाई अभियान चलाने के बाद लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता पैदा होनी चाहिए थी, और उस जागरूकता के चलते उन्हें सफाई रखने-रखाने, स्वच्छता कायम रखने में गहरी रुचि पैदा हो जानी चाहिए थी। किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। लोग आज भी ट्रेनों में मूँगफली खाते हैं और अपने सामने ही, यानी अपने ही पैरों के पास उसके छिलके गिराते जाते हैं। बीड़ी पीते हैं और टोटे कहीं भी फेंक देते हैं। ज़रा-सा मौका मिलता है और जिप खोलकर चिन्ता मुक्त हो लेते हैं। अपने घर का कूड़ा बगल में फेंक देते हैं। यदि बगल वाला सचेत (और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक तथा कुछ हद तक झगड़ालू ) है तो हो सकता है उसे बख्श दें और कूड़ा सामने वाले पार्क में फेंकने की जहमत उठा लें, किन्तु उसे नगर निगम के कूड़ेदान में फेंकने अथवा पैसे लेकर कूड़ा एकत्र करनेवाले निगम-कर्मियों/ एनजीओ-कर्मियों को तो वे कतई नहीं देंगे।
इसका आशय क्या हुआ? आम तौर पर यह समझा जाता है कि समाज के गण्य-मान्य लोग जैसा आचरण करते हैं, वैसा ही आचरण जन-सामान्य करते हैं। संस्कृत में कहावत प्रसिद्ध  है- यथा राजा, तथा प्रजा। मोदी महोदय ने जब अपने शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों आदि से देश-पर्यन्त झाड़ू लगवाई तब उनके मन में संभवतः यही परिकल्पना रही होगी कि अपने-अपने अग्रणी लोगों को सफाई में निरत देखने पर आम लोग भी सफाई के प्रति सचेत रहेंगे और धीरे-धीरे देश में लोगों के भीतर साफ-सफाई का संस्कार पैदा होगा।
दुर्भाग्य की बात है कि तथाकथित शुचिता के प्रति अत्यन्त आग्रही रहनेवाला हमारा समाज दैनंदिन सफाई के प्रति बिलकुल बेपरवाह और काफी हद तक निस्पृह है। मसलन, रजस्वला महिलाओं को रसोई में भी घुसने नहीं देना, बिना नहाए-धोए रसोई न करना, बिना स्नान-ध्यान भोजन ग्रहण न करना, ये सब बातें हमारे देश के एक बहुत बड़े वर्ग में आम हैं। किन्तु वही लोग पान खाकर दिनभर  इधर-उधर पिचिर-पिचिर थूकने में कोई गुरेज नहीं करते, कहीं भी शौच-निवृत्त हो लेने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती, उलझन तो खैर होती ही नहीं। क्या मोदी महोदय ऐसे हिप्पोक्रैट समाज की मानसिकता में कोई परिवर्तन ला सकते हैं?
हमारी मूल समस्या अपने देश, उसके सभी अवयवों आदि के प्रति हमारी ओनरशिप की है। हमारी मानसिक संकीर्णता यदि दूर हो जाए, हम इस देश के समस्त अवयवो को अपना समझने लगें तो शेष सभी समस्याएं स्वतः दूर हो  जाएंगी। मूँगफली खाकर उसके छिलके बोगी में फेंक देने से जो गंदगी पैदा हो रही है, यानी हम खुद तो मूँगफली के मज़े ले रहे हैं किन्तु हमारी वज़ह से हमारे परिवेश को जो नुकसान पहुँच रहा है, उसका हमें आभास भी नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि हम अपने आस-पास के परिवेश को अपना मानते ही नहीं। अपना तो क्या हम उसे अपने आस-पास बैठे बाकी लोगों का भी नहीं मानते। हम उस परिवेश पर अपना अधिकार चाहे मानते हों, क्योंकि उसके लिए हमने वाजिब किराया चुकाया है। अलबत्ता हम यह मानते हैं कि उस परिवेश को स्वच्छ रखने की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। सार्वजनिक परिवेश, सार्वजनिक सुविधाओं आदि को स्वच्छ  रखने के लिए या स्वच्छ बनाए रखने के  लिए कोई हमसे टोका-टाकी करे तो भी हमें नागवार लगेगा, क्योंकि हम यह मानते हैं कि सार्वजनिक सम्पत्ति पर किसी का वैयक्तिक अधिकार नहीं है। और चूंकि वह किसी के वैयक्ति अधिकार-क्षेत्र में नहीं आती, इसलिए उसकी सुरक्षा-स्वच्छता आदि के बारे में टोका-टाकी का अधिकार भी किसी व्यक्ति-विशेष का नहीं है।
यह बहुत दुर्भाग्य की बात है। यदि कोई व्यक्ति साहस करके ऐसी किसी कारगुजारी पर आपत्ति भी करे तो शेष नागरिक उसके साथ नहीं खड़े होते, बल्कि बहुत संभव है कि उसके विरोध में खड़े हो जाएं। बहुत अहसान करेंगे तो चुपचाप तमाशाई बने देखते रहेंगे।
मोदी महोदय के स्वच्छता अभियान का तब तक कोई अर्थ नहीं है, जब तक वे कोई ऐसा कानून नहीं पास करवाते, जिसमें गदगी फैलाने वालों के लिए दंड और गंदगी करनेवालों को ऐसा करने से रोकने वालों के लिए पुरस्कार नहीं तो कम से कम संरक्षण का प्रावधान हो। कई शहरों में यातायात व्यवस्था बनाए रखने के लिए कुछ चुनिंदा नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं। इसी प्रकार के अधिकार समाज के कुछ व्यक्तियों को सफाई कायम रखने के लिए भी दिए जाने चाहिए। ऐसे अधिकार-संपन्न व्यक्ति यदि किसी को गंदगी फैलाते पाएँ तो कम से कम उनकी भर्त्सना करने और उन्हें ऐसा करने से वर्जित करने की क्षमता उनके पास हो। तब कम से कम गंदगी फैलानेवाला व्यक्ति सीनाजोरी नहीं कर पाएगा और उसे उसकी गलती का अहसास कराया जा सकेगा।
कहावत प्रसिद्ध है- भय के बिना प्रीति नहीं होती। हमारे देश के लोगों का स्वाभिमान तो कब का मर चुका। वे अब कोई गलत काम करने से पहले यह नहीं सोचते कि कोई देख लेगा तो कैसा लगेगा! इसलिए अब बारी है लोगों के बीच भय कायम करने की। जो गंदगी फैलाए, उसे भयभीत करके ही सही रास्ते लगाया जा सकता है, खुद झाड़ू लगाकर नहीं।
हमें तो डर है कि यदि हमारे माननीय लोग बार-बार झाड़ू लगाएँगे तो जिन सफाई-कर्मियों की नियुक्ति ही झाड़ू लगाने के की गई है और जो पहले से ही अपने काम से किनारा किए हुए हैं, वे काम करना पूरी तरह छोड़ देंगे और उम्मीद करने लगेंगे कि साहब लोग ही झाड़ू लगा लें, हमारी क्या ज़रूरत है। हम तो नौकरी ले लें और मासिक पगार घर ले जाएँ, यही समाज और सरकार पर बहुत बड़ा अहसान है। ज़ाहिर सी बात है, दूसरों का काम हमें खुद नहीं करना, दूसरों की फैलाई गंदगी हमें नहीं साफ करनी। बेहतर होगा मोदी महोदय इस फलसफे का प्रचार-प्रसार करें।

Wednesday, 19 August 2015

आसमान के भिश्ती बादल (गीत)



आसमान के भिश्ती बादल (गीत)
               डॉ. रामवृक्ष सिंह

आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।
बिजली के संग झूम-झूमकर खूब नाचते-गाते हैं।

मई-जून में धरती सारी जब जलने लग जाती है।
व्याकुल होकर जब सब दुनिया हर पल इन्हें बुलाती है।
बहुत दूर सागर से जल ले, दौड़े-दौड़े आते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

खेती का अब समय हो गया, चला चुके खेतों में हल।
जरा सिंचाई हो जाए तो मिले हमें मेहनत का फल।
इसी सोच में पड़े कृषक जब, प्रभु से रोज मनाते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

दूर पहाड़ों पर घाटी में मैदानों में गाँव-शहर।
उमड़-घुमड़ कर बड़े मजे से बरसाते पानी घर-घर।
इसीलिए धरती माता से इनके गहरे नाते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

मस्त पवन घोड़े हैं इनके आसमान है इनका घर।
गिर जाने का आसमान से इनको नहीं जरा-सा डर।
अलबत्ता ये गरज-गरज बच्चों को बहुत डराते हैं।
आसमान के भिश्ती बादल, पानी भरकर लाते हैं।।

पाकिस्तान के नाम (कविता)



पाकिस्तान के नाम (कविता)
                     डॉ. रामवृक्ष सिंह
हिंस्र पशु है वो मगर हम शान्ति के शाश्वत पुजारी।
कोई बतलाए कभी क्या शान्ति है हिंसा से हारी।।

प्रेम से यदि वह न माने तो हमें आती लड़ाई।
फिर कोई हमसे न कहना जान गर उसने गँवाई।।

वह अगर छोटा है हमसे कर रहा उद्दंडता क्यों।
दे न पाएँ माफियाँ हम, कर रहा ऐसी खता क्यों।

युद्ध यदि लाजिम हुआ तो हम लड़ेंगे प्राण-पण से।
आन पर आ जाए यदि तो भय नहीं हमको मरण से।

किन्तु जिनको युद्ध भाए, मूर्ख हैं, नादान हैं वे।
शान्ति के हम हैं पुजारी युद्ध का आह्वान हैं वे।

दीन को, अपने खुदा को क्यों हैं वे बदनाम करते।
क्यों नहीं कौमी तरक्की के लिए कुछ काम करते।

पेशतर होता कि पढ़-लिखकर भले इन्सान बनते।
डॉकटर बनते, मुदर्रिस या कि साइंसदान बनते।

होश में आते ही गोले बम और बंदूकें उठा ली।
आदमी है वे कि आदम जात को हैं एक गाली।।

वह सपूत भारत माता का....



वह सपूत भारत माता का (गीत)
                   डॉ. रामवृक्ष सिंह

वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।
अवनि और अंबर में जिसने भरत-भूमि की शान बढ़ाई।।

जिसने सिखलाया बच्चों को सपनों के पंखों पर उड़ना।
प्रासादों औ प्राचीरों को तज अपनी मिट्टी से जुड़ना।
सबसे ऊँचा पद पाकर भी विनयशीलता नहीं भुलाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।।

बना आणविक शक्ति देश तब जब उसने अभियान चलाया।
अग्नि और पृथ्वी के ज़रिए भारत का परचम लहराया।
और अगर मौका पाया तो वीणा जिसने मधुर बजाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।।

जिसकी आँखों में बसते थे नव-भारत के स्वप्न सुहाने।
चला गया निष्ठुर तजकर सब, सत्य किन्तु मन कैसे माने।
उस अजातअरि से भी यम ने यह कैसी दुश्मनी निभाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।

जिसकी चमक न होगी फीकी, वह भारत का रत्न अनूठा।
उस गौरवमय के समक्ष सर्वस्व धरा का लगता झूठा।
हा! हतभागी भरत-वर्ष ने वह अमूल्य निधि आज गँवाई।
वह सपूत भारत माता का अभी-अभी ले गया विदाई।